गुरुवार, 3 जुलाई 2014

चुनौती अच्छे दिन लाने की

चुनौती अच्छे दिन लाने की


अब जबकि 16 वां लोक सभा चुनाव समाप्त हो चुका और चुनाव की खुमारी उतर चुकी है, एक नाम जो चुनाव के दौरान केंद्र में था वह अब भी सबका केंद्र बिंदु बना हुआ है। वह नाम कोई और नहीं बल्कि चुनाव के दौरान भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री उम्मीदवार और अब देश के प्रधानमंत्री बन चुके नरेन्द्र दामोदरदास मोदी का है। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने कई नारों का इस्तेमाल किया जिसमें सबसे चर्चित नारा रहा ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’। यही नहीं चुनाव परिणाम वाले दिन जब लगभग नतीजों का अनुमान मिल गया और यह सुनिश्चित हो चुका था कि आने वाली सरकार भाजपा की ही होगी तब मोदी के ट्विटर अकाउंट से भी उस दिन का पहला ट्वीट- “India has won! भारत की विजय। अच्छे दिन आने वाले हैं” इसी नारे से संबंधित था। वहीं परिणाम के बाद मोदी ने अपने अभिभाषण में लोगों को संबोधित करते हुए जो पहला वाक्य बोला वह भी यही नारा था।
अब प्रश्न उठता है कि क्या वाकई अच्छे दिन आ गए हैं? इस प्रश्न का उपयुक्त जवाब पाने के लिए मोदी सरकार को मिले उनके कार्यकाल के पांच साल पूर्ण करने दें,  तभी हम उनके किए गए कार्य का उचित मूल्यांकन कर सकेंगे। वैसे अभी नरेन्द्र मोदी को पदभार संभाले 30 दिन ही हुए हैं और लोग अभी से मूल्यांकन में लग गए हैं। माफ कीजिये समय काटने और सरकार चलाने में फर्क होता है, यहाँ तो तलाक के लिए भी कई महीनों का समय दिया जाता है, बच्चों की परीक्षा भी सेमेस्टर की समाप्ति पर लिए जाते हैं और लोग 30 दिनों में ही अंक गणित में लग गए। वैसे अगर हम मोदी और उनके कुछ दिनों की कार्यशैली की बात करें भी तो इतना तय है कि जिस गुड गवर्नेंस की बात वह चुनाव के दौरान कर रहे थे उसे उन्होंने अपनाया भी है। शायद ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी नेता ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही कैबिनेट सचिव और गृह सचिव से मिल काम शुरू कर दिया हो। मोदी ने सरकारी खर्चो में कटौती करने और काम में दक्षता और कुशलता बढ़ाने के लिए मंत्रालयों में काट-छांट और उन्हें आपस में मिलाने का एक बेहतरीन कार्य किया है। इन चन्द दिनों में ही उन्होंने अपनी सरकार को यह निर्देश दिया की कोई भी मंत्री अपने किसी रिश्तेदार को अपने यहां काम ना दें। मोदी ने साथ ही सभी को यह सख्त निर्देश दिया है कि सभी अपने खर्चे में कटौती करें इसके अलावा मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल की याद ताजा करवा दी जब उन्होंने सांसदों को पैर छूने की जगह काम करने पर जोर देने की बात कही। मोदी यहीं नहीं रुके उन्होंने तमाम विभागों के सचिवों से मुलाकात कर अपनी मंशा जाहिर कर दी उन्होंने कहा मेहनत कीजिए, आइडिया लाइए, जब जी चाहे मिलिए, दरवाजे खुले हैं।

भारत की बेहतरी के लिए सपने दिखाने वाले मोदी के सामने जिम्मेदारी बहुत बड़ी है और उससे भी ज्यादा चुनौती पूर्ण है लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना। जिस तरह का जनादेश मोदी को प्राप्त हुआ है और आजादी के बाद अब तक के इतिहास में भाजपा ऐसी पहली गैर कांग्रेसी दल बनी जिसने अपने बूते पूर्ण बहुमत प्राप्त किया है ऐसी परिस्थिति में बहुत से मुश्किल फैसले हैं जिन्हें केंद्र सरकार को लेना होगा और उनके पास पिछली सरकार की तरह खुद को मजबूर बताना भी संभव नहीं हो पायेगा। संसद के संयुक्त सत्र में राष्ट्रपति ने अभिभाषण में सरकार के जो लक्ष्य बताए उसका अगर 50 प्रतिशत भी पूरा हुआ तो देश की काया पलट संभव है परन्तु इन में अगर मोदी नाकाम रहे तो सुरसा की तरह विरोधी अपना कार्य करने को मुस्तैद हैं ही।