जज्बात
सोमवार, 24 अगस्त 2015
मरता शरीर
सिसकियाँ छुप गई, दबे स्वर घुट गए
अँधेरा और भी गहराता गया,
मरते शरीर को देखने लोग आने लगे
संवेदनाओं की बहार लिए,
काश, कोई और पहले आ जाता
आत्मा के मरने से पहले...
शनिवार, 22 अगस्त 2015
रंगे सियार
यहाँ सभी रंगे सियार हैं,
फिर भी ढूंढते हैं दूसरे के अन्दर के सियार को,
गिद्ध जैसी आँखें लिए,
नज़रें टिकाये रहते हैं किसी और पर,
रंग बदल लेते हैं तपाक से,
गिरगिट भी द्वेष में आ जाये
दूसरों को कोसते है अपनी खोट छिपाये
समझ नहीं आता इन्हें इंसान कैसे कहूँ
इन रंगे सियारों को...
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