मंगलवार, 29 मार्च 2011

याद आई बहुत...


याद आई बहुत...                             
ना ही वक्त रुका और ना ही समय मिला ,
और वह चली गई
यह कह कर कि वह मुझसे अब भी प्यार करती हैं
और करते रहेगी तमाम उम्र
इस थोड़े से समय में,मुझे याद आता है,
उसके साथ बिताएं सभी पल
मुझे याद आता है उसका बातबात में गुस्सा
और गुस्से गुस्से में उसका प्यार
पर कचोटती हैं उसकी एक बात आज तक ,
कि मैं उसकी चिंता नहीं करता और नहीं करता हूँ उसको याद
मुझे पता है कि उसकी परवाह है मुझे
पर दिखा नहीं पाता हूँ
मैं बोल कर नहीं अपने भावों से बहुत कुछ कह जाता हूँ
पर वह समझ नहीं पाती हैं कुछ
नासमझ हैं वह फिर भी प्यारी हैं बहुत
मुझे अफ़सोस नहीं,हताशा नहीं,
ना ही दुख है उसके जाने का
मैं जानता था ऐसा होना ही हैं
फिर भी चाहता था कुछ वक्त और मिले
उसके साथ समय बिताने का और बहुत कुछ समझाने का
पर शायद मैं आगे भी यही चाहता
की रुक जाए वह कुछ दिन और
वाकई मुझे दुख नहीं,अफ़सोस नहीं,
बस एक अजीब खालीपन का एहसास हैं
जो शायद वर्षों तक भर ना पाएं ,
मुझे इसकी फिक्र भी नहीं,
बस चिंता हैं उसके गुस्से का,
उसकी नासमझी और उसके भोलेपन का
मैं चाहता हूँ कोई मुझसे भी ज्यादा उसे चाहें,
 उसे समझे,प्यार करें और खुश रखें बहुत,
मैं चाहता हूँ वह खुश रहे,
खुश रहे... 

शनिवार, 26 मार्च 2011

शर्माना पड़ता हैं


                      
अकड़ कर नहीं कहीं और कभी
नरमी से काम चलाना पड़ता हैं

ये तो अपनी मजबूरियां हैं 
कि खुद के गुस्से को भी दबाना पड़ता हैं

हर जगह खुद को क्या बताना
कहीं – कहीं  अपनी पहचान छुपाना पड़ता हैं

ये जगह का फर्क है कि हर जगह थप्पड़ नहीं चलते
बातों से भी काम चलाना पड़ता हैं

मंदिर में हो तो सर झुकना
और मस्जिद में घुटने टिकाना पड़ता हैं

दिल ग़मों का मकबरा हैं
फिर भी लोगों को मुस्काना पड़ता हैं

और ये खूबसूरती,एहसास,जज्बात और नज़ाकत है दोस्त
कि प्यार में हो तो मेरी जां शर्माना पड़ता हैं