मंगलवार, 29 मार्च 2011

याद आई बहुत...


याद आई बहुत...                             
ना ही वक्त रुका और ना ही समय मिला ,
और वह चली गई
यह कह कर कि वह मुझसे अब भी प्यार करती हैं
और करते रहेगी तमाम उम्र
इस थोड़े से समय में,मुझे याद आता है,
उसके साथ बिताएं सभी पल
मुझे याद आता है उसका बातबात में गुस्सा
और गुस्से गुस्से में उसका प्यार
पर कचोटती हैं उसकी एक बात आज तक ,
कि मैं उसकी चिंता नहीं करता और नहीं करता हूँ उसको याद
मुझे पता है कि उसकी परवाह है मुझे
पर दिखा नहीं पाता हूँ
मैं बोल कर नहीं अपने भावों से बहुत कुछ कह जाता हूँ
पर वह समझ नहीं पाती हैं कुछ
नासमझ हैं वह फिर भी प्यारी हैं बहुत
मुझे अफ़सोस नहीं,हताशा नहीं,
ना ही दुख है उसके जाने का
मैं जानता था ऐसा होना ही हैं
फिर भी चाहता था कुछ वक्त और मिले
उसके साथ समय बिताने का और बहुत कुछ समझाने का
पर शायद मैं आगे भी यही चाहता
की रुक जाए वह कुछ दिन और
वाकई मुझे दुख नहीं,अफ़सोस नहीं,
बस एक अजीब खालीपन का एहसास हैं
जो शायद वर्षों तक भर ना पाएं ,
मुझे इसकी फिक्र भी नहीं,
बस चिंता हैं उसके गुस्से का,
उसकी नासमझी और उसके भोलेपन का
मैं चाहता हूँ कोई मुझसे भी ज्यादा उसे चाहें,
 उसे समझे,प्यार करें और खुश रखें बहुत,
मैं चाहता हूँ वह खुश रहे,
खुश रहे... 

2 टिप्‍पणियां:

  1. swarnaabh baht sundar kavita hai. kai yadon ko dil mein samete Rakesh

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  2. congress swarntabh for ur nice poem per yaar y to
    pyar ka dasture h..... kisi ko pyar mil jata h to kisi ka chhot jata h... per such pyar ki yaade humesha shat rahti h.........i like last 2 lines most

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