शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

लौह पुरुष ही नहीं 'त्याग' और 'युग पुरुष' भी थे सरदार पटेल

पाटीदार यानी कुर्मी परिवार में जन्में एक व्यक्ति ने खुद अपने बल बुते जो देश के लिए किया उसका देश सदा आभारी रहेगा। कल सरदार वल्लभ भाई पटेल की जंयती है और मैं उन्हें नमन करता हूँ। समाज के सभी वर्ग, अमीर-गरीब सभी के लिए कुर्मी समाज से आने वाले इस महापुरुष ने प्रेरणादायक जीवन प्रस्तुत किया है। 
हम कल्पना भी नहीं कर सकते है कि अगर सरदार पटेल न होते तो हमारा भारत कैसा होता, क्या होता यहां के लोगों का? इसी लौह पुरुष के एक फैसले के कारण आज करोड़ों भारतीय पाकिस्तानी बनने से बच गए। बिना किसी हिंसा के 562 छोटी बड़ी रियासतों को भारत में मिलाने का काम सरदार पटेल ने किया था जिसपर गांधी जी ने भी सरदार पटेल से कहा था कि रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे। देश को एक करने में जिस सरदार पटेल का इतना बड़ा हाथ था उन्हीं पर इन विपक्षी पार्टियों ने अपनी सियासी ‘स्याही’ फेंकने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने जब उनकी लोहे कि सबसे बड़ी प्रतिमा बनाने की बात तो इसी ‘महाविनाश’ गठबंधन के पार्टनरों ने अपने लोकसभा में मिले पराजय का बदला लेने के लिए हमारे और आप सबके सरदार पटेल को भी नहीं छोड़ा और इस सबसे बड़े बनने वाली प्रतिमा पर ही अपना सियासी रंग उड़ेल दिया, जबकि वो भूल गए की सरदार पटेल तो कांग्रेस की तरफ से ही देश के पहले गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री बने थे। मित्रों जो सरदार जी को भूल सकता है उन्हें आप कहाँ याद रहने वाले।    
यही नहीं सरदार पटेल का व्यक्तित्व सिर्फ कड़े फैसले लेने भर का नहीं था बल्कि त्याग और देश के लिए जीने का उनका जज्बा भी बेमिसाल था। लोग आज मुख्यमंत्री पद के लिए एक दूसरे को गाली देने वाले, नीचा दिखाने वालों तक के साथ महास्वार्थ गठबंधन कर रहें हैं जबकि एक बार कांग्रेस के अधिवेशन में सरदार पटेल को नेहरु जी की तुलना में बहुमत से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार चुना पर नेहरू जी और गांधी जी के कहने पर उन्होंने देश के लिये प्रधानमंत्री का पद न लेने का फैसला किया, ऐसे थे हमारे ‘त्याग पुरुष’ ऐसा दूसरा उदाहरण कहीं नहीं मिल सकता, ऐसा त्याग, देश के लिए ऐसा जुनून कहाँ मिल सकता है। तो मित्रों फैसला आपको करना है कि आप महास्वार्थ वाले गठबंधन का साथ देंगे या मोदी जी जैसा सादा जीवन जीने वाला, सबका हित सोचने वाला और विकासशील बिहार बनाने का प्रण लेने वाले मोदी जी का साथ देंगे। 
मित्रों यही नहीं कई मुद्दों पर सरदार पटेल का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मतभेद था। इसके बाद भी उन्होंने हमेशा नेहरू जी के मान को बढ़ाए रखा और उनकी बात मानी। हर समय देश हित की सोची, ऐसा युग पुरुष अब शायद दोबारा ना हो।
एक बार सरदार पटेल ने बिहार में 15 दिन का दौरा किया किसानों की दुर्दशा देखकर उनका हृदय रो उठा। उनके सभा को सुनने जनसमूह उमड़ पड़ा, उन्होंने किसानों से संगठित होने का आवाहन किया, उन्होंने किसानों को निर्भयता का पाठ पढ़ाया उन्होंने कहाँ कि आपको जमींदारों और सरकार से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। उनके बातों का जबरदस्त प्रभाव पड़ा। बिहार कांग्रेस के नेताओं और किसानों ने भी यह महसूस किया कि सरदार पटेल के दौरे से प्रदेश में जो जन-जागृति आई, वह अभूतपूर्व थी। यहीं नहीं किसानों की दुर्दशा के अलावा उन्होंने महिलाओं के पर्दा प्रथा के खिलाफ भी लोगों को समझाया और महिलाओं के योगदान को समझने और उनको साथ लेने की बात की|
उनकी कर्मठता, फैसले लेने कि क्षमता और उनका जुझारूपन ही था जो उन्हें दूसरों से कहीं आगे खड़ा करती है। उन्होंने हर समय देश हित की सोची, वह लौह पुरुष ही नहीं बल्कि ‘युग पुरुष’ भी हैं। ऐसा युग पुरुष अब शायद दोबारा ना हो।
बर्फ से ढका ज्वालामुखी सा
राष्ट्रीय एकता के शिल्पकार ,
वही आधुनिक भारत के निर्माता हैं
उपाधि में ‘सरदार’ मिला,
और लौह पुरुष कहलाते हैं।
प्रधानमंत्री का पद त्याग दिया
ऐसे हैं ये ‘त्याग पुरुष’,
देश के लिए किया जीवन समर्पण
यही है हमारे ‘युग पुरुष’।

शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

मेरा-तेरा फर्क

चलो मान लेता हूँ मैंने तुम्हें चाहने का नाटक किया,
चलो मान लेता हूँ मैंने तुम्हें ठगा,
चलो मान लेता हूँ मैंने तुम्हें दुःख दिया,
चलो मान लेता हूँ मैंने तुम्हारी खुशियों का ख्याल न रखा,
हाँ, मैं दोषी हूँ
मैं तुमसे दिल से माफ़ी मांगता हूँ मगर,
एक बार मुझे समझने कि कोशिश तो की होती,
इतना तो जान लेती मैं तुम्हारे लिए क्या सोचता हूँ,
मेरी भावनाओं को परख तो लेती,
मगर नहीं, तुमने ऐसा कुछ नहीं किया
तुमने अपने आवेश में मेरे एतबार पर बार-बार चोट की,
मेरे प्यार तक को नकार दिया,
मेरी भावनाओं को रौंद कर जीत का वहम तक पाल लिया
मानता हूँ ये सब तुम्हारा गुस्सा और मेरे लिए प्यार था,
मगर बस एक बात का उत्तर दो,
अब मुझमें और तुममें फर्क ही क्या रहा?


गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

तुम कुछ भी नहीं

ज़िन्दगी में जब आप कुछ बनने कि कोशिश में हो,
या करीब हो,
या बन चुके हो
सफलता आपको चूमती हो,
मगर तबतक आप कुछ भी नहीं,
जबतक आपका चाहने वाला आपसे खुश नहीं
इसे मानने में परहेज कैसा कि आप हारे हुए हो,
आपका कोई अपना जब दुःखी हो तो
आप खुद को जीता हुआ मान भी कैसे सकते हो?
भले ही आपमें क़ाबिलीयत की भरमार हो,
पर सच है कि आप काबिल नहीं,
आपके चाहने वाली की अपेक्षा की उपेक्षा
आपकी सारी उपलब्धियों को धो देता है,
दुनिया को जीतने कि कोशिश तबतक व्यर्थ है
जबतक आप अपनों के प्यार से हारे हुए हो,
व्यर्थ है तुम्हारा बनाया हुआ सारा आडंबर
व्यर्थ है अब तुम्हारा सारा आलाप,
जाओ जीत सकते हो तो जीत लो अपने चाहने वालों को,
उनके प्यार को, उनके विश्वास को,
उनके चेहरे कि मुस्कान ही तुम्हारी उपलब्धि है,
उनकी ख़ुशी ही तुम्हारी सफलता है,
तुम्हारे लिए स्नेह से उठा उनका हाथ ही तुम्हारी जीत है,

और तबतक तुम कुछ भी नहीं