सोमवार, 21 दिसंबर 2015

#‎बेफिक्रमन‬

#‎बेफिक्रमन‬ नहीं, तुममें वो बात नहीं जो उसमें थी. वो दूर रह कर भी मेरे दिल में रहती है, तुम पास रह के भी दिल से बहुत दूर. उसका प्यार निस्वार्थ था, समर्पण था उसके प्यार में, तुम्हारी चाहत में वो भाव कहां. तुम्हारे पास होना मेरी मजबूरी है मगर तब भी मेरी विवशता पर उसने आह तक नहीं की. आज भले ही वो मेरे पास नहीं मगर असल में मैं तुम्हारा नहीं उसका कर्जदार हूँ.

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

लौह पुरुष ही नहीं 'त्याग' और 'युग पुरुष' भी थे सरदार पटेल

पाटीदार यानी कुर्मी परिवार में जन्में एक व्यक्ति ने खुद अपने बल बुते जो देश के लिए किया उसका देश सदा आभारी रहेगा। कल सरदार वल्लभ भाई पटेल की जंयती है और मैं उन्हें नमन करता हूँ। समाज के सभी वर्ग, अमीर-गरीब सभी के लिए कुर्मी समाज से आने वाले इस महापुरुष ने प्रेरणादायक जीवन प्रस्तुत किया है। 
हम कल्पना भी नहीं कर सकते है कि अगर सरदार पटेल न होते तो हमारा भारत कैसा होता, क्या होता यहां के लोगों का? इसी लौह पुरुष के एक फैसले के कारण आज करोड़ों भारतीय पाकिस्तानी बनने से बच गए। बिना किसी हिंसा के 562 छोटी बड़ी रियासतों को भारत में मिलाने का काम सरदार पटेल ने किया था जिसपर गांधी जी ने भी सरदार पटेल से कहा था कि रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे। देश को एक करने में जिस सरदार पटेल का इतना बड़ा हाथ था उन्हीं पर इन विपक्षी पार्टियों ने अपनी सियासी ‘स्याही’ फेंकने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने जब उनकी लोहे कि सबसे बड़ी प्रतिमा बनाने की बात तो इसी ‘महाविनाश’ गठबंधन के पार्टनरों ने अपने लोकसभा में मिले पराजय का बदला लेने के लिए हमारे और आप सबके सरदार पटेल को भी नहीं छोड़ा और इस सबसे बड़े बनने वाली प्रतिमा पर ही अपना सियासी रंग उड़ेल दिया, जबकि वो भूल गए की सरदार पटेल तो कांग्रेस की तरफ से ही देश के पहले गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री बने थे। मित्रों जो सरदार जी को भूल सकता है उन्हें आप कहाँ याद रहने वाले।    
यही नहीं सरदार पटेल का व्यक्तित्व सिर्फ कड़े फैसले लेने भर का नहीं था बल्कि त्याग और देश के लिए जीने का उनका जज्बा भी बेमिसाल था। लोग आज मुख्यमंत्री पद के लिए एक दूसरे को गाली देने वाले, नीचा दिखाने वालों तक के साथ महास्वार्थ गठबंधन कर रहें हैं जबकि एक बार कांग्रेस के अधिवेशन में सरदार पटेल को नेहरु जी की तुलना में बहुमत से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार चुना पर नेहरू जी और गांधी जी के कहने पर उन्होंने देश के लिये प्रधानमंत्री का पद न लेने का फैसला किया, ऐसे थे हमारे ‘त्याग पुरुष’ ऐसा दूसरा उदाहरण कहीं नहीं मिल सकता, ऐसा त्याग, देश के लिए ऐसा जुनून कहाँ मिल सकता है। तो मित्रों फैसला आपको करना है कि आप महास्वार्थ वाले गठबंधन का साथ देंगे या मोदी जी जैसा सादा जीवन जीने वाला, सबका हित सोचने वाला और विकासशील बिहार बनाने का प्रण लेने वाले मोदी जी का साथ देंगे। 
मित्रों यही नहीं कई मुद्दों पर सरदार पटेल का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मतभेद था। इसके बाद भी उन्होंने हमेशा नेहरू जी के मान को बढ़ाए रखा और उनकी बात मानी। हर समय देश हित की सोची, ऐसा युग पुरुष अब शायद दोबारा ना हो।
एक बार सरदार पटेल ने बिहार में 15 दिन का दौरा किया किसानों की दुर्दशा देखकर उनका हृदय रो उठा। उनके सभा को सुनने जनसमूह उमड़ पड़ा, उन्होंने किसानों से संगठित होने का आवाहन किया, उन्होंने किसानों को निर्भयता का पाठ पढ़ाया उन्होंने कहाँ कि आपको जमींदारों और सरकार से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। उनके बातों का जबरदस्त प्रभाव पड़ा। बिहार कांग्रेस के नेताओं और किसानों ने भी यह महसूस किया कि सरदार पटेल के दौरे से प्रदेश में जो जन-जागृति आई, वह अभूतपूर्व थी। यहीं नहीं किसानों की दुर्दशा के अलावा उन्होंने महिलाओं के पर्दा प्रथा के खिलाफ भी लोगों को समझाया और महिलाओं के योगदान को समझने और उनको साथ लेने की बात की|
उनकी कर्मठता, फैसले लेने कि क्षमता और उनका जुझारूपन ही था जो उन्हें दूसरों से कहीं आगे खड़ा करती है। उन्होंने हर समय देश हित की सोची, वह लौह पुरुष ही नहीं बल्कि ‘युग पुरुष’ भी हैं। ऐसा युग पुरुष अब शायद दोबारा ना हो।
बर्फ से ढका ज्वालामुखी सा
राष्ट्रीय एकता के शिल्पकार ,
वही आधुनिक भारत के निर्माता हैं
उपाधि में ‘सरदार’ मिला,
और लौह पुरुष कहलाते हैं।
प्रधानमंत्री का पद त्याग दिया
ऐसे हैं ये ‘त्याग पुरुष’,
देश के लिए किया जीवन समर्पण
यही है हमारे ‘युग पुरुष’।

शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

मेरा-तेरा फर्क

चलो मान लेता हूँ मैंने तुम्हें चाहने का नाटक किया,
चलो मान लेता हूँ मैंने तुम्हें ठगा,
चलो मान लेता हूँ मैंने तुम्हें दुःख दिया,
चलो मान लेता हूँ मैंने तुम्हारी खुशियों का ख्याल न रखा,
हाँ, मैं दोषी हूँ
मैं तुमसे दिल से माफ़ी मांगता हूँ मगर,
एक बार मुझे समझने कि कोशिश तो की होती,
इतना तो जान लेती मैं तुम्हारे लिए क्या सोचता हूँ,
मेरी भावनाओं को परख तो लेती,
मगर नहीं, तुमने ऐसा कुछ नहीं किया
तुमने अपने आवेश में मेरे एतबार पर बार-बार चोट की,
मेरे प्यार तक को नकार दिया,
मेरी भावनाओं को रौंद कर जीत का वहम तक पाल लिया
मानता हूँ ये सब तुम्हारा गुस्सा और मेरे लिए प्यार था,
मगर बस एक बात का उत्तर दो,
अब मुझमें और तुममें फर्क ही क्या रहा?


गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

तुम कुछ भी नहीं

ज़िन्दगी में जब आप कुछ बनने कि कोशिश में हो,
या करीब हो,
या बन चुके हो
सफलता आपको चूमती हो,
मगर तबतक आप कुछ भी नहीं,
जबतक आपका चाहने वाला आपसे खुश नहीं
इसे मानने में परहेज कैसा कि आप हारे हुए हो,
आपका कोई अपना जब दुःखी हो तो
आप खुद को जीता हुआ मान भी कैसे सकते हो?
भले ही आपमें क़ाबिलीयत की भरमार हो,
पर सच है कि आप काबिल नहीं,
आपके चाहने वाली की अपेक्षा की उपेक्षा
आपकी सारी उपलब्धियों को धो देता है,
दुनिया को जीतने कि कोशिश तबतक व्यर्थ है
जबतक आप अपनों के प्यार से हारे हुए हो,
व्यर्थ है तुम्हारा बनाया हुआ सारा आडंबर
व्यर्थ है अब तुम्हारा सारा आलाप,
जाओ जीत सकते हो तो जीत लो अपने चाहने वालों को,
उनके प्यार को, उनके विश्वास को,
उनके चेहरे कि मुस्कान ही तुम्हारी उपलब्धि है,
उनकी ख़ुशी ही तुम्हारी सफलता है,
तुम्हारे लिए स्नेह से उठा उनका हाथ ही तुम्हारी जीत है,

और तबतक तुम कुछ भी नहीं

शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

प्रार्थना

मैं अब प्रबुद्ध वर्ग की चपेट से कैसे बचूं
यहाँ हर कोई इतना ज्ञानी है कि,
अपनी अज्ञानता में ही डूब मरना चाहता हूँ
इस जगह ज्ञान का प्रवचन निरंतर बिना रुके चलता रहता है
अब इसका इतना आदि हो चुका हूँ कि इसे छोड़ा भी नहीं जाता
इस फेसबुक, इस ट्विटर, इस सोशल मीडिया से आप सब ही बचाएं
आप ही ज्ञानी हैं, आप ही सब कुछ हैं

सोमवार, 24 अगस्त 2015

मरता शरीर


सिसकियाँ छुप गई, दबे स्वर घुट गए
अँधेरा और भी गहराता गया,
मरते शरीर को देखने लोग आने लगे
संवेदनाओं की बहार लिए,
काश, कोई और पहले आ जाता
     आत्मा के मरने से पहले... 

शनिवार, 22 अगस्त 2015

रंगे सियार

यहाँ सभी रंगे सियार हैं,
फिर भी ढूंढते हैं दूसरे के अन्दर के सियार को,
गिद्ध जैसी आँखें लिए,
नज़रें टिकाये रहते हैं किसी और पर,
रंग बदल लेते हैं तपाक से,
गिरगिट भी द्वेष में आ जाये
दूसरों को कोसते है अपनी खोट छिपाये
समझ नहीं आता इन्हें इंसान कैसे कहूँ

इन रंगे सियारों को...

शुक्रवार, 5 जून 2015

पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क मामला सिर्फ एक साजिश

पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क मामला सिर्फ एक साजिश
एक जुमला है जब आप पर कीचड़ उछाली जाने लगे तब समझना आप तरक्की कर रहे हो। योग गुरु बाबा रामदेव ऐसा ही एक नाम हैं। केंद्र में जब कांग्रेस की सरकार थी तब से स्वामी जी भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ लड़ते रहे हैं जिसका परिणाम यह रहा की कांग्रेस पूरी ताकत से बाबा के पीछे पड़ उनपर कीचड़ उछालने से लेकर आरोप तक लगाती रही है। 4 जून 2011 की वह काली रात जिसे अभी तक भुलाया नहीं जा सका है जब रात में सोते निहत्थे लोगों और स्वामी जी पर पुलिस द्वारा जानलेवा लाठीचार्ज करवाया गया था, जिसमें बाबा की जान बाल-बाल बची पर उनकी समर्थक राजबाला को नहीं बचाया जा सका। गौरतलब है कि राजीव धवन को रामलीला मैदान में हुई पुलिस की कार्रवाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एमिकस क्युरी (कोर्ट सलाहकार) नियुक्त किया था। राजीव धवन ने कोर्ट को दी अपनी रिपोर्ट में यह बात कही थी कि रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के खिलाफ पुलिस कार्रवाई पहले से तय थी। सरकार एक तरफ रामदेव को आंदोलन खत्म करने के लिए मना रही थीतो दूसरी तरफ पुलिस को कार्रवाई के लिए निर्देश दिए जा रहे थे।
साजिशों की यह प्रक्रिया अब और भी तेज हो चुकी है। अब कांग्रेस मल्टीनेशनल कंपनियों के साथ मिल कर किसी तरह स्वामी रामदेव को फंसाना चाह रही है।  नए मामले में हमला अब स्वामी जी के भाई रामभरत पर किया गया है और उन्हें हत्या के आरोप में फंसाया जा रहा है। विगत हो कि बुधवार को पंतजलि फूड एंड हर्बल पार्क में हुई झड़प में एक व्यक्ति की मौत हो गई और उसका आरोप रामभरत पर लगाया गया है। यह मामला बड़ा ही पेचीदा है और इसे साजिश कहने के पीछे मेरे कुछ कारण हैं:
पहला, पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के पीछे के सत्य को उजागर किया है उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर और सोशल मीडिया के जरिये अपनी पूरी बात रखी और साथ ही घटना के महीने पहले हरिद्वार के थानाध्यक्ष को दिया गया प्रार्थना पत्र और दर्ज एफ.आई.आर. की छायाप्रति को संलग्न कर इसके प्रमाण दिए हैं कि किस तरह से पंतजलि फूड एंड हर्बल पार्क में अराजकता फैलाई जा रही थी और बार-बार प्रार्थना करने और एफ.आई.आर दर्ज करवाने पर भी पुलिस मौन रही। यहाँ सभी को सत्य से अवगत करवाने के लिए थानाध्यक्ष को दिया गया प्रार्थना पत्र और दर्ज एफ.आई.आर. की छायाप्रति के लिए फेसबुक पर डाले गए आचार्य बालकृष्ण की पूरी पोस्ट और साथ में उसका लिंक भी दे रहा हूँ।
फेसबुक पर डाले गए आचार्य बालकृष्ण की पूरी पोस्ट-
दिनाँक 27 मई,२०१५ की फ़ूड पार्क में घटित दुर्भाग्यपूर्ण घटना व उसका सत्य-
उन असामाजिक तत्वों द्वारा पहले भी १५ से २० बार हथियारों के साथ अटैक हो चुका हैपतंजलि के माध्यम से दिनांक १५ अप्रैल २०१५ को स्थानीय थाने में शिकायत भी दर्ज करवाई गयीपरन्तु पुलिस प्रसाशन द्वारा आजतक कोई कार्यवाही नहीं की गयी।
पतंजलि के ही एक वरिष्ठ पदाधिकारी स्वर्गीय श्री अनिल यादव का ३० मार्च को मर्डर कर दिया गया परन्तु हम मौन रहेबार-बार अटैक करने पर भी हम मौन रहे पुलिस में FIR दर्ज करवाई लेकिन पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही न होने के कारण अवैध यूनियन से जुड़े कुछ अवैध अराजक तत्वों की ओर से बार-बार अटैक होता रहाफैक्ट्री में आने वाली प्रत्येक गाड़ी से अराजक तत्वों द्वारा अवैध वसूली होती रहीलेकिन हमने सदैव धैर्य रखकर कानून व्यवस्था का पालन किया।
जो कुछ हुआ वह भीड़ व भगदड़ में हुआ फिर भी उस व्यक्ति की मौत का हमें दुःख है। हम किसी भी हिंसा के सख्त खिलाफ हैं।
जहाँ तक रामभरत का प्रश्न है वह निर्दोष हैं उन्हें गलत फंसाया जा रहा है राज्य सरकार के इशारे पर पुलिस प्रशासन और सरकार की तरफ से राजनैतिक बदले की भावना और पक्षपातपूर्ण जो कार्यवाही हो रही है ये लोकतान्त्रिक मूल्यों का हनन है । जो इस मामलें में असली मुजरिम हैं उनके खिलाफ अभी भी FIR भी दर्ज नहीं की जा रही। हमारे पतंजलि फ़ूड पार्क के निर्दोष व्यक्ति को जबरन पकड़ कर जेल में डाला हुआ है।
पतंजलि के सात-आठ भाइयों को भी गंभीर चोटें आई हैं परन्तु पुलिस द्वारा अबतक गुनहगारों को गिरफ्तार करना तो दूर हमारीFIR भी दर्ज नहीं की गई है । उक्त घटना के बाद आज भी दिन भर असामाजिक तत्व फूड पार्क में उत्पात मचाते रहे,परन्तु पुलिस का कोई सहयोग नहीं मिला । जो आज स्वदेशी का सर्वोत्तम प्रतिष्ठान है जहाँ से हजारों परिवारों का (प्रत्यक्ष रूप से २०-२५ हजार व परोक्ष रूप से एक लाख से अधिक परिवारों का ) भरण पोषण होता होउनके परिवार व जीवन को संकट में डालकरउनके पेट पर लात मारने का कार्य एक राजनैतिक पार्टी के षड्यन्त्र के साथ सम्मिलित होकर पुलिस प्रशासन कर रहा है जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
गुनाहगारों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए लेकिन बदले की भावना से पक्षपातपूर्ण कार्यवाही नहीं होनी चाहिए।
संलग्नक -
1 . थानाध्यक्ष को 15.04.2015 को दिया गया प्रार्थना पत्र
2. 15.04.2015 को दर्ज एफ.आई.आर. की छायाप्रति
3. 27.05. 2015 को दिया गया प्रार्थना पत्र
इस पूरे पोस्ट का लिंक-
दूसरा, देश ही नहीं दुनिया भर में योग के जरिए लोगों की कई बीमारियां ठीक कर इस विद्या को एक नई पहचान देने वाले बाबा रामदेव स्वदेशी स्वावलंबन के बहुत बड़े हितैषी है उनका पूरा जोर इस बात पर रहा है कि देश का पैसा देश में ही रहे और यहीं के विकास में इसका इस्तेमाल हो सके। इसी सोच और इच्छाशक्ति का नतीजा है कि आज देश ही नहीं एशिया के सबसे बड़े पतंजलि फूड एवं हर्बल पार्क के जरिये बाबा स्वदेशी वस्तुओं का निर्माण कर रहें हैं। हजारों लोगों को इससे रोजगार प्राप्त हुआ है। 2014-15 वित्तीय वर्ष में कंपनी का सालाना टर्नओवर 67 फीसदी की छलांग के साथ 2000 करोड़ पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। जिस रफ़्तार से कंपनी ने मुनाफा कमाया है, लोगों में पतंजलि के प्रति रुचि बढ़ी है और जिस तरह से इसने विश्वसनीय ब्रांड वैल्यू इमेज का निर्माण किया है उसको देखते हुए सिर्फ मुनाफे को लक्ष्य बनाने वाली मल्टीनेशनल कंपनियों की नींद उड़ना स्वाभाविक है। जिस तेज़ी से पतंजलि उत्पादों का कारोबार बढ़ेगा उसका सीधा असर दूसरे मल्टीनेशनल कंपनियों के मुनाफे पर होगा। पतंजलि ने अभी अपनी प्रतिद्वंदी कंपनी इमामी को पछाड़ दिया है और अब दूसरी कंपनियों को भी इसका डर होगा। ऐसा संभव है कि इस डर को समाप्त करने का एक तरीका लोगों में पतंजलि के विश्वसनीय ब्रांड वैल्यू इमेज को गिरा कर हासिल करने की हो? ऐसा पहले भी इन मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा उनके हितैषी राजनेताओं के जरिये करवाया जाता रहा है। कभी औषधियों में गाय की हड्डी की बात कर तो कभी ‘पुत्रजीवक’ पर बवाल खड़ा कर।
तीसरी और सबसे बड़ी बात, कांग्रेस के केंद्र में रहते हुए स्वामी रामदेव ने भ्रष्टाचार से लेकर बहुत से मामलों में केंद्र सरकार को घेरा और आंदोलन भी किए परिणामतः केंद्र में रहते हुए कांग्रेस ने कई मामलों में बाबा रामदेव और उनके करीबियों पर भी आरोपों की बौछार कर दी मामला विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानन (फेमा) के उल्लंघन का हो जिसमें  प्रवर्तन निदेशालय बिना किसी सबूत के केस बंद करने को विवश है तो वहीं आचार्य बालकृष्ण से संबंधित फर्जी पासपोर्ट मामला जिसमें कोर्ट ने उन्हें सही ठहराया तो वहीं बाबा रामदेव के गुरु शंकरदेव के अपहरण के मामले में भी उन्हें फंसाने की कोशिश नाकाम साबित हुई। ऐसे ही बहुत से मामलों में कांग्रेस ने उन्हें फंसाने की नाकाम कोशिश की। ताजा मामले को ही लें यहां भी कांग्रेस पीछे नहीं है। खबर की पूरी जानकारी बिना कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने बाबा को दोषी बताते हुए ट्वीट किया तो वहीं उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने भी बाबा रामदेव को बिना किसी सबूत और न्यायालय के फैसले के बिना दोषी बता दिया। मालूम हो कि उत्तराखंड में अभी कांग्रेस की सरकार है और एक महीने पहले दिए गए प्रार्थना पत्र के बावजूद पुलिस द्वारा खामोश रहना किसी साजिश की और ही इशारा करती है।


शुक्रवार, 8 मई 2015

पसंद की तो मौत भी नहीं मिलती!

हर रोज मरता है,
मरे भी क्यों नहीं,
गरीब है|
भूखे पेट मरने से अच्छा है,
सलमान की कार के नीचे मरता,
नाम हो जाता, गुमनाम मौत नहीं मिलती|
मगर अफ़सोस गरीबों को मौत भी मर्जी की नहीं मिलती
खेद, सलमान अब कार नहीं चलाते|

शुक्रवार, 1 मई 2015

#‎बेफिक्रमन‬

#‎बेफिक्रमन‬ ये इत्तफाक ही था कि कई सालों बाद मैं उससे टकरा गया| आज भी वह वैसी ही थी, जैसी सालों पहले| उसने मेरी तरफ देखा भी नहीं, मैंने उसका पल्लू पकड़कर उसे रोकना चाहा मगर रेत की तरह वह भी फिसलती चली गई, जैसे कल उसे रोक नहीं पाया था आज भी उसे रोक न सका| अलविदा न उसने कहा है और न मैंने|

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

किसान हूँ भाई!

कार्टून साभार-Shyam Jagota

किसान हूँ भाई!

हर रोज लड़ता हूँ खुद से,
कुदरत से और सरकारी तमाचे से भी|
हर रोज स्वाहा हो जाता है फसलों का बोझा,
हर रोज बढ़ता जाता है कर्ज का बोझ,
हर रोज ही खेला जाता है हमसे,
अब तो हर रोज बनाया जाने लगा है हमारा मजाक भी,
100 रुपए की चेक से महीना तो निकल ही जायेगा?
भले ही 100 रुपए में वेश्या न माने,
पर मैं वेश्या भी तो नहीं,
मैं तो बस एक किसान हूँ|  

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

‪#‎बेफिक्रमन

‪#‎बेफिक्रमन‬ हर रोज कॉलेज जाने के बहाने पर माँ भी अचरज में थी, जानता था माँ भी समझ रही है पर मजबूर दिल को संभालना मुश्किल था| जिस बस स्टॉप पर आती उसी पर घंटों उसका इंतजार बिलकुल नीरस नहीं लगता| दोस्त जान जाते तो मजाक बनाते मगर कुछ तो बात थी उसमें जो सिर्फ उसमें ही थी|

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

#‎बेफिक्रमन‬ इत्तफाक से तुम्हें ढूँढते-ढूँढते जिससे डर था उसी से टकरा गया इसी से बेफिक्र मन को यह एहसास हुआ की यह तो मेरी गली से निकलने वाला ही चौराहा है|