शुक्रवार, 1 मई 2015

#‎बेफिक्रमन‬

#‎बेफिक्रमन‬ ये इत्तफाक ही था कि कई सालों बाद मैं उससे टकरा गया| आज भी वह वैसी ही थी, जैसी सालों पहले| उसने मेरी तरफ देखा भी नहीं, मैंने उसका पल्लू पकड़कर उसे रोकना चाहा मगर रेत की तरह वह भी फिसलती चली गई, जैसे कल उसे रोक नहीं पाया था आज भी उसे रोक न सका| अलविदा न उसने कहा है और न मैंने|

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें