अकड़ कर नहीं कहीं और कभी
नरमी से काम चलाना पड़ता हैं
ये तो अपनी मजबूरियां हैं
कि खुद के गुस्से को भी दबाना पड़ता हैं
हर जगह खुद को क्या बताना
कहीं – कहीं अपनी पहचान छुपाना पड़ता हैं
ये जगह का फर्क है कि हर जगह थप्पड़ नहीं चलते
बातों से भी काम चलाना पड़ता हैं
मंदिर में हो तो सर झुकना
और मस्जिद में घुटने टिकाना पड़ता हैं
दिल ग़मों का मकबरा हैं
फिर भी लोगों को मुस्काना पड़ता हैं
और ये खूबसूरती,एहसास,जज्बात और नज़ाकत है दोस्त
कि प्यार में हो तो मेरी जां शर्माना पड़ता हैं
प्यार का क्या है ग़ालिब?
जवाब देंहटाएंइसमें तो सर भी कटाना पड़ता है.
अब क्या करें साला दिल के कारण
दिमाग की बत्ती को बुझाना पड़ता है.
गर जीना है इस रूमानी अहसास को
तो पुरुषार्थ दिखाना पड़ता है.